Sunday, May 31, 2020

समय चक्र

रात को खाना खाने के बाद मैं हमेशा की तरह अपने घर के बाहर बने हुये लान में टहल रहा था|
ऑफिस में प्रोजेक्ट को लेकर मन में कुछ उलझन थी जिससे निजात पाने हेतु मैंने अपने होंठो में सिगरेट सुलगा ली थी और टहलते हुए उसका धीरे धीरे कश लिए जा रहा था|
शुरू से हीं ऐसी हर परेशानी का हल मैंने सिगरेट के धुएँ में ढूंढा था । ये आदत मुझे मेरे पिताजी से विरासत में मिली थी|

इसी दौरान अचानक पीछे से आकर किसी ने मेरे कुर्ते को पकड़ लिया| मुड़ कर देखा तो पाया मेरा 8 साल का बेटा आरव था| मैंने उससे इशारों में पूछा- “क्या काम है?”
“पापा प्लीज आप सिगरेट मत पिया करो| ये सेहत के लिए बहुत नुकसानदायक है| टीवी में भी यही दिखाते है और विद्यालय में मेरे गुरुजी भी यहीं कहते है कि बीड़ी सिगरेट पीना बुरी बात होती है|”
एक तो वैसे ही मैं अपने काम से परेशान था, दूसरा उसका इस तरह से मुझे बोलना, मुझे एकदम से गुस्सा आ गया| उसके गाल पर थप्पड़ मारते हुये मैं गुस्से से चिल्ला पड़ा था-“जा, जाकर अंदर पढ़ाई कर, मेरा बाप बनने की कोशिश मत कर|” थप्पड़ पड़ते ही आरव रोता हुआ घर के अंदर भाग गया|
उसके जाने के बाद मुझे भी अपनी हरकत पर दुख हुआ पर अब कुछ नहीं हो सकता था|
मैं वापस सिगरेट में खो गया था| तभी अचानक मुझे मेरी माँ की आवाज ने चौंका दिया-“बेटा क्या गलत कहा था आरव ने जो तूने उसे थप्पड़ मार दिया? भूल गया तेरे पिताजी कितनी सिगरेट पीते थे और तू कैसे उन्हे मना करता था| काश तेरे पिताजी ने तेरी बात मानी होती वो आज...” कहते कहते माँ रो पड़ी थी| माँ की बात सुनते ही मेरी आँखों के सामने जैसे मेरे बचपन के दृश्य साकार हो उठे थे|
“पापा प्लीज आप सिगरेट मत पिया करो| ये सेहत के लिए अच्छी नहीं होती| इससे कैंसर हो जाता है|” मैं अपने पिता से कह रहा था| उस समय मैं भी लगभग 8-9 साल का ही होगा|
और पापा का जवाब था- “बेटा मैं जानता हूँ, बीड़ी सिगरेट सेहत के लिए ठीक नहीं है, पर क्या करू? जब भी मुझे कोई परेशानी होती है बस तब ही मैं सिगरेट पीता हूँ| सिगरेट पीने से दिमाग को आराम मिलता है और मैं अपनी परेशानी भूल जाता हूँ|”
“पापा जब भी आप परेशान हो, मेरे साथ खेला करो सब परेशानी दूर हो जाएगी|” मैंने मुस्कराते हुये कहा|
“ठीक है मेरे बाप|” कहते हुये पापा ने सिगरेट छोड़ दी और मेरे साथ खेलने लग गए थे|
“पापा! आज फिर आपने सीट बेल्ट नहीं लगाई|” पापा कार स्टार्ट कर रहे थे और मैं उनके बगल में बैठा हुआ उन्हे डांट रहा था| मैंने अपनी सीट बेल्ट पहले ही लगा ली थी|
“अरे...अरे... मैं बस पहनने ही वाला था, उससे पहले ही तूने बोल दिया?” पापा ने झेपते हुया कहा
“पापा झूठ बाद में बोलिए पहले सीट बेल्ट लगाइए|”
“ओके मेरे बाप लगाता हूँ|” कहते हुये उन्होने सीट बेल्ट लगा ली और कार चालू की| उन्होने पहले मुझे मेरे स्कूल में छोड़ा और फिर अपने काम को चल दिये|
मेरे पापा का खुद का कपड़ो का बिजनेस था जिसे वो अपने एक बचपन के मित्र के साथ साझेदारी में चला रहे थे| हमारी ज़िंदगी में सब कुछ सही चल रहा था| हाँ पापा अब भी सिगरेट पीते थे और बोलने पर हमेशा यहीं जवाब देते थे वो थोड़ा परेशान है और सिगरेट पीने से उनको दिमागी आराम मिलता है| पर मेरे बोलने पर वो छोड़ देते थे और मेरे साथ खेलने लग जाते थे| ऐसे ही कुछ साल गुजर गए मैं अब 15 साल का हो गया था| पापा पिछले कुछ दिनों से पहले से ज्यादा सिगरेट पीने लग गए थे, शायद वो अब कुछ ज्यादा परेशान रहने लग गए थे| पर एक तो अब मैं बड़ा हो गया था, दूसरा मेरा दसवी बोर्ड की परीक्षा का साल था, तो मेरा ज़्यादातर समय अब पढ़ाई में गुजरने लग गया था| मेरा पापा के साथ खेलना अब लगभग न के बराबर हो गया था, इसलिए मैं नहीं जान पाया था कि वो अब किस परेशानी से गुजर रहे है? और जब मैंने पापा की परेशानी को जाना, तब तक बहुत देर हो चुकी थी| एक दिन अचानक पापा की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई| उन्हे हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया तो पता चला ज्यादा धूम्रपान करने की वजह से पापा को कैंसर हो गया | तब पापा ने बताया कि उनके बचपन के मित्र जिनके साथ उनका कारोबार था , जिन पर वो सबसे ज्यादा भरोसा करते थे, उन्होने बिजनेस में उन्हें धोखा दिया था।  इस सदमे से वो उबर ना पाये और सदा तनाव में रहने लगे थे और उस परेशानी से मिथ्या  निजात उन्हे उनकी फेवरिट सिगरेट हीं दिला पाती थी | इस सिगरेट रूपी धीमे जहर से उन्हे कब कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो गई, उन्हे पता भी नहीं चला| पापा के इलाज़ में धीरे धीरे हमारी सारी जमा-पूंजी खत्म हो गई, मकान बिक गया पर पापा ठीक नहीं हुये और एक दिन वो हमें अकेला छोड़ा कर इस दुनियाँ से चले गए| पापा के जाने के बाद माँ ने बड़ी मुश्किल से हमारे परिवार को संभाला| मैंने कसम खाई थी मैं कभी कोई नशा नहीं करूंगा पर वो कसम जल्दी ही टूट गयी जब मैंने इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया| कॉलेज में मुझे एक लड़की से प्यार हुआ और जल्दी ब्रेकअप भी हो गया| ब्रेकअप के बाद मैं बहुत परेशान रहने लगा था ।
मेरी इस हालत में किसी दोस्त ने सिगरेट पकड़ाते हुए कहा कहा-“ये ले , एक कश खींच, तेरी सारी परेशानी दूर हो जाएगी|” उसकी बात सुनकर मुझे मेरे पापा की बात याद आ गई-“ सिगरेट पीने से दिमाग को आराम मिलता है|” सिगरेट पीने से पापा का क्या अंजाम हुआ था ये मुझे याद था, मुझे मेरी कसम याद थी; पर मेरा दिमाग इतना ज्यादा परेशान हो चुका था कि मैं आगे की सोचे बिना सुट्टा लगाने लगा| सिगरेट पीते ही जैसे दिमाग को कुछ शांति सी पहुंची थी| धीरे धीरे मुझे सिगरेट की आदत होने लगी थी और जब भी किसी परेशानी में होता, मुझे सिगरेट के अलावा कुछ और नहीं सूझता| इंजीनियरिंग करने के बाद मैं एक सॉफ्टवेयर कंपनी में जॉब करने लगा | जॉब लगते ही मैंने माँ की पसंद की लड़की से शादी कर ली और शादी के 2 साल बाद आरव पैदा हुआ| जब वो थोड़ा बड़ा हुआ तो उसकी आदतें मेरे बचपन की आदतों से मिलने लगी| जैसे किसी गलती पर मैं अपने पापा को टोक देता था, मेरा बेटा भी मुझे टोकने लग गया था| बाईक पर हेलमेंट ना लगाने पर, कार में सीट बेल्ट ना लगाने पर, रेड लाइट पर सिग्नल तोड़ने पर हर बात पर वो मुझे नियम बताता| मेरे सिगरेट पीने पर भी वो मुझे टोकता था और आज से पहले मैं भी सिगरेट छोड़ कर उसके साथ खेलने लग जाता था| पर आज दिमाग कुछ ज्यादा परेशान था| ऑफिस में प्रोजेक्ट को पूरा करने की डेडलाइन मिल चुकी थी और प्रोजेक्ट तैयार नहीं था, जिसकी वजह से दिमाग आज अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत ज्यादा परेशान था और उसी परेशानी का समाधान मैं सिगरेट में ढूंढ रहा था| और इन्हीं हालातों  से आज मैंने आरव को पहली बार इस तरह से डांट कर भगा दिया था| माँ की बात सुनकर जैसे मुझे होश आ गया था| बचपन में हम सब कितने मासूम होते है| हर नियम का पालन करते है, अच्छे बुरे का ज्ञान होता है और बुराई से दूर रहते है| बड़े होने के बाद ना जाने क्यों हम  बचपन की उस अच्छाई को भूल जाते है| अच्छे बुरे का ज्ञान होने के बावजूद हम बुराई को अपनाते है| मुझे लगा, जैसे मेरे पापा ही इस जन्म में आरव बन कर मेरी ज़िंदगी में आए है, बुराइयों से दूर करने आए है और जिस तरह से सिगरेट पीने की वजह से उनकी मृत्यु  हो गई थी, वो मुझे अपने उस आने वाले कल से बचाने आए है| मैंने तुरंत अपनी सुलगाई हुई सिगरेट को बुझा कर फेंक दिया और अपने कुर्ते की जेब से सिगरेट का पैकेट निकालकर घर के डस्टबिन में डाल दिया और अंदर आरव के साथ खेलने चल दिया जो मेरी परेशानी का सबसे बेहतर इलाज़ था| घर के अंदर घुसने से पहले मैंने एक बार आँगन में खड़ी हुई माँ पर नजर दौड़ाई, जिसकी आँखों में आँसू छलक रहे थे, पर मैं जानता था वो खुशी के आँसू थे|