Tuesday, September 29, 2020

ताराचंद शर्मा राजस्थान राज्य के अलवर जिले के एक गाँव के सरकारी माध्यमिक विद्यालय में गणित के अध्यापक है| पिछले कुछ दिनों से वो बहुत परेशान थे| कोरोना -19 महामारी के चलते देश में मार्च से लॉकडाउन लागू किया गया था| लॉकडाउन में आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों, परिवहन सेवाओं, खेल, सिनेमा आदि के साथ साथ शैक्षिक संस्थानों की गतिविधियों पर भी रोक लगा दी गई थी| उनका विद्यालय भी तब से बंद ही था| समय के साथ-साथ कई इकाइयां कोरोना -19 महामारी से बचाव के सुरक्षा उपायों को अपनाकर शुरू हो गई थी| देश और राज्य के अधिकांश विद्यालयों में भी ऑनलाइन माध्यम से बच्चों की कक्षा शुरू हो चुकी थी, जिसमे बच्चे मोबाइल या कम्प्युटर का इस्तेमाल करके घर पर ही अध्यापकों से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे| पर यह सुविधा सभी बच्चों को हासिल नहीं थी| दूर गावों में, जहां पर मोबाइल कम्प्युटर या अच्छी इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुविधा नहीं थी, वहाँ रहने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे| यहीं ताराचंद शर्मा की परेशानी का कारण था| उनके विद्यालय के बच्चे भी अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पा रहे थे| ताराचंद शर्मा जब 5 वर्ष पहले इस विद्यालय में पढ़ाने के लिए आए थे, तब विद्यालय में पढ़ाई की स्थिति, खासतौर पर गणित की स्थिति बहुत खराब थी| बच्चे पढ़ाई में बिलकुल भी ध्यान नहीं देते थे| पढ़ाने के लिए पूरा स्टाफ भी नहीं था और जो कुछ शिक्षक वहाँ थे, वो भी जल्दी से अपना ट्रान्सफर शहर में करवाना चाहते थे, इसलिए वो मन लगाकर नहीं पढ़ाते थे| परिमाणस्वरूप विद्यालय का दसवीं बोर्ड परीक्षा परिणाम भी 10-20% से ज्यादा नहीं रहता था| कई अभिभावकों ने अपने बच्चों को विद्यालय से निकालकर शहर के निजी विद्यालय में प्रवेश करवा दिया था और सिर्फ गरीब परिवारों के बच्चे ही विद्यालय में पढ़ते थे| ताराचंद शर्मा खुद एक गरीब परिवार से थे और बढ़ी मुश्किलों से अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुये अपनी मेहनत और लगन से आज एक अध्यापक बने थे| उन्होने विद्यालय की स्थिति को सुधारने का निर्णय लिया और बच्चो को मन लगाकर पढ़ाने लग गए| गणित के साथ साथ वो विज्ञान भी पढ़ाया करते थे| दूसरे साथी अध्यापक शुरू में उसका मज़ाक उड़ाते थे, पर बाद में उनकी लगन देखकर वो भी बच्चों को मन लगाकर पढ़ाने लग गए| उस वर्ष पहली बार विद्यालय दसवीं बोर्ड परीक्षा का परिणाम 60% से ज्यादा था, वही गणित में सभी बच्चे पास हुये थे| यह देखकर सभी अध्यापको का जोश दुगना हो गया और वो बच्चों पर और ज्यादा मेहनत करने लग गए| दूसरे साल विद्यालय का परीक्षा परिणाम 85% से ज्यादा रहा| यह देखकर गाँव के अभिभावकों, जिन्होने अपने बच्चो का प्रवेश शहर के निजी विद्यालय में करवाया था, उन्होने वापस गाँव के विद्यालय में करवा दिया| ये ताराचंद शर्मा और दूसरे अध्यापको की मेहनत का नतीजा था कि पिछले 3 वर्षों से विद्यालय का दसवीं बोर्ड परीक्षा का परिणाम ना सिर्फ 100% प्रतिशत रहा बल्कि पिछले वर्ष विद्यालय के 2 विध्यार्थीयों ने मेरिट लिस्ट में अपना स्थान भी बनाया था| अलवर जिला कलेक्टर ने गाँव के विध्यालय को जिले के सर्वश्रेष्ठ विद्यालय की उपाधि से सम्मानित किया था| “क्या कोरोना महामारी की वजह से विद्यालय का नाम खराब हो जाएगा?” सोचते हुये ताराचंद शर्मा परेशान हो उठे थे| -“नहीं नहीं मैं ऐसा कभी नहीं होने दूँगा|” सोचते हुये उन्होने एक निश्चय किया और अपने साथी अध्यापकों के साथ एक चर्चा की| चर्चा में उन्होने सोशल डिस्टेन्स के साथ 9वी-10वी के बच्चों को पढ़ाने का सुझाव दिया, जिसमे एक ग्रुप में सिर्फ 8-10 बच्चे हो और अध्यापक उन्हे दूर से पढ़ाये| सभी अध्यापक उनके इस सुझाव से सहमत थे| उन्होने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी| ताराचंद शर्मा ने जिला कलेक्टर से मिलकर पूरी बात बताई और पूरे सुरक्षा साधनो के साथ बच्चों को पढ़ाने के लिए आज्ञा ली| विद्यालय को पूरी तरह से सेनीटाइज़ करवाया गया और जगह जगह हाथ को धोने के लिए सेनीटाइज़र रखे गए| तापमान मापने के लिए डिजिटल थर्मामीटर लाया गया| बच्चो को मास्क बाटें गए| और इस तरह से उन्होने सोशल डिस्टेन्स के साथ बच्चों को पढ़ाना शुरू किया| ताराचंद शर्मा आज खुश थे कि मोबाइल, कम्प्युटर, इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसे संसाधनों की कमी की वजह से उनका विद्यालय शहरी निजी विद्यालयों से पीछे नहीं रहेगा|