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Thursday, October 28, 2021
नया जन्म
संजय राठोड़ कल रात से बहुत परेशान था| वह भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर कार्यरत था जिसकी तैनाती कारगिल में थी| वह 15 दिन पहले ही अपनी 60 दिन की वार्षिक छुट्टियाँ लेकर अपनी गर्भवती पत्नी की देखभाल के लिए घर आया हुआ था| जब वो अपने तैनाती स्थल से अपने घर के लिए निकला था तब तक वहाँ पर सब कुछ सही चल रहा था| पर पिछले 5-6 दिनों से सरहद के उस पार से भारतीय सीमा में घुसपेठ की खबरे आ रही थी| उसके साथियों की छुट्टियाँ रद्द हो चुकी थी और उन्हे जल्द से जल्द अपनी पोस्टिंग पर लौटने के लिए कहा गया था| हालांकि उसको अभी तक बुलावा नहीं आया था, पर यह जानकर कि उसकी मातृभूमि पर संकट आया हुआ है, वह भी जल्दी से जल्दी कारगिल जाना चाहता था| पर वह यह सोचकर परेशान था कि उसके पीछे से उसकी गर्भवती बीवी को किसके पास छोड़कर जाएगा, उसकी देखभाल कौन करेगा? ऐसा नहीं था कि उसके परिवार में कोई और नहीं था| उसके परिवार में सब थे, माता-पिता,भाई-बहन, पर उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया था| उसकी वजह थी कि उसने अपने घरवालो के विरुद्ध जाकर अपने महाविध्यालय में साथ पढ़ने वाली काजल से शादी की थी| काजल निम्न जाति समझे जाने वाली महार जाती से थी| संजय ने अपने माता-पिता को समझाने की बहुत कोशिश की थी कि आज के जमाने में जात-पात व्यर्थ बात है| उसकी माँ तो फिर भी काजल को अपनाने के लिए तैयार हो गई थी पर उसके पिताजी पुराने विचारों के थे और आज भी उन्हे अपनी ऊंची जाती पर अभिमान था| उन्होने काजल को अपनाने से साफ इंकार कर दिया था| मजबूरन संजय ने काजल के साथ कोर्ट में विवाह किया और शहर में अलग मकान लेकर रहने लग गया था| पढ़ाई पूरी करने के बाद संजय भारत माँ की सेवा करने के अपने बचपन के सपने को पूरा करने के लिए भारतीय सेना में भर्ती हो गया वहीं पर काजल एक विध्यालय में पढ़ाने लग गई| साल में 1 बार अपनी वार्षिक छुट्टियों में ही वो काजल से मिल पाता था| जब काजल गर्भवती हुई थी तो उसने ये समाचार अपने माता-पिता को बताने के लिए काजल को लेकर उनके पास गया था पर उसके पिता ने उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया था और दुबारा वहाँ कभी नहीं आने के लिए कहा था|
रात भर वो इसी उधेड़बुन में था कि उसके जाने के बाद काजल की इस हालत में देखभाल कौन करेगा और इसी वजह से वो सो नहीं पाया था| काजल उसकी इस परेशानी को समझ गई थी| उसने सुबह होते ही संजय से कहा –“ मैं अपनी सहेली को अपने पास बुला लेगी, आपको चिंता करने के बिलकुल भी जरूरत नहीं है| इस समय मुझसे ज्यादा भारत माँ को आपकी जरूरत है| बस आप जल्दी सीमा पर जाकर दुश्मन को सबक सिखाइए|”
उसकी बात सुनकर संजय थोड़ा बहुत चिंतामुक्त हुआ| उसने अपना बेग उठाया और स्टेशन की और चल पड़ा| उसकी बीवी उसको विदा करने के लिए स्टेशन तक आई| उसने मुड़ कर देखा तो लगा बीवी के साथ उसका बेटा भी उसे दुश्मन से लड़ने के लिए शुभकामनायें दे रहा है|
संजय को सरहद पर गए 5 दिन हो गए थे| कारगिल की पहाड़ियों में दुश्मन अपना कब्जा जमा लिया था और भारतीय सेना ने उनको भगाने के लिए उनके खिलाफ कार्यवाही प्रारम्भ कर दी थी| उसके पीछे काजल अब घर में अकेली थी| उसने अपनी सहेली को बुलाना चाहा पर उसकी सहेली शहर से बाहर गई हुई थी| उसे बहुत परेशानी हो रही थी पर वो अपनी परेशानी किसी को भी बता नहीं सकती थी| वो बस भगवान से लड़ाई को जल्दी से जल्दी खत्म करने की प्रार्थना करने लगी थी ताकि उसका पति उसके पास लौट सके| सुबह के 11 बज रहे थे और काजल अपने घर में बिस्तर में लेटी हुई थी कि तभी बाहर से किसी ने बेल बजाई| वो किसी तरह से बिस्तर से उठी और दरवाजा खोला तो पाया कि सामने संजय के माता-पिता खड़े थे| उसने नीचे झुक कर उन्हे प्रणाम करना चाहा पर संजय की माँ ने उसे बीच में ही रोक लिया और अपने गले से लगा लिया| तभी काजल की नजरे सामने की तरफ गई तो वो चौंक पड़ी| कुछ सैनिक एक ताबूत को लेकर खड़े थे और फिर जैसे वो सब समझ गई थी| उसके मुंह से एक ज़ोर सी चीख निकली और आँखों से आँसूओं की धारा बह निकली| तभी संजय के पिता ने कहा-“नहीं बेटी रोते नहीं है| तुम्हारा पति देश के लिए शहीद हुआ है| मेरे बेटे ने देश के लिए जान दी है पर उसने मेरी सोच को एक नया जन्म दिया है| जब देश की रक्षा करने वालों में हम जाति नहीं देखते, फिर क्यों मैं अपनी बहू में जाति देखने लग गया था| मुझे माफ कर दो बेटी|”
Tuesday, September 29, 2020
ताराचंद शर्मा राजस्थान राज्य के अलवर जिले के एक गाँव के सरकारी माध्यमिक विद्यालय में गणित के अध्यापक है| पिछले कुछ दिनों से वो बहुत परेशान थे| कोरोना -19 महामारी के चलते देश में मार्च से लॉकडाउन लागू किया गया था| लॉकडाउन में आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों, परिवहन सेवाओं, खेल, सिनेमा आदि के साथ साथ शैक्षिक संस्थानों की गतिविधियों पर भी रोक लगा दी गई थी| उनका विद्यालय भी तब से बंद ही था| समय के साथ-साथ कई इकाइयां कोरोना -19 महामारी से बचाव के सुरक्षा उपायों को अपनाकर शुरू हो गई थी| देश और राज्य के अधिकांश विद्यालयों में भी ऑनलाइन माध्यम से बच्चों की कक्षा शुरू हो चुकी थी, जिसमे बच्चे मोबाइल या कम्प्युटर का इस्तेमाल करके घर पर ही अध्यापकों से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे| पर यह सुविधा सभी बच्चों को हासिल नहीं थी| दूर गावों में, जहां पर मोबाइल कम्प्युटर या अच्छी इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुविधा नहीं थी, वहाँ रहने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे| यहीं ताराचंद शर्मा की परेशानी का कारण था| उनके विद्यालय के बच्चे भी अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पा रहे थे|
ताराचंद शर्मा जब 5 वर्ष पहले इस विद्यालय में पढ़ाने के लिए आए थे, तब विद्यालय में पढ़ाई की स्थिति, खासतौर पर गणित की स्थिति बहुत खराब थी| बच्चे पढ़ाई में बिलकुल भी ध्यान नहीं देते थे| पढ़ाने के लिए पूरा स्टाफ भी नहीं था और जो कुछ शिक्षक वहाँ थे, वो भी जल्दी से अपना ट्रान्सफर शहर में करवाना चाहते थे, इसलिए वो मन लगाकर नहीं पढ़ाते थे| परिमाणस्वरूप विद्यालय का दसवीं बोर्ड परीक्षा परिणाम भी 10-20% से ज्यादा नहीं रहता था| कई अभिभावकों ने अपने बच्चों को विद्यालय से निकालकर शहर के निजी विद्यालय में प्रवेश करवा दिया था और सिर्फ गरीब परिवारों के बच्चे ही विद्यालय में पढ़ते थे| ताराचंद शर्मा खुद एक गरीब परिवार से थे और बढ़ी मुश्किलों से अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुये अपनी मेहनत और लगन से आज एक अध्यापक बने थे| उन्होने विद्यालय की स्थिति को सुधारने का निर्णय लिया और बच्चो को मन लगाकर पढ़ाने लग गए| गणित के साथ साथ वो विज्ञान भी पढ़ाया करते थे| दूसरे साथी अध्यापक शुरू में उसका मज़ाक उड़ाते थे, पर बाद में उनकी लगन देखकर वो भी बच्चों को मन लगाकर पढ़ाने लग गए| उस वर्ष पहली बार विद्यालय दसवीं बोर्ड परीक्षा का परिणाम 60% से ज्यादा था, वही गणित में सभी बच्चे पास हुये थे| यह देखकर सभी अध्यापको का जोश दुगना हो गया और वो बच्चों पर और ज्यादा मेहनत करने लग गए| दूसरे साल विद्यालय का परीक्षा परिणाम 85% से ज्यादा रहा| यह देखकर गाँव के अभिभावकों, जिन्होने अपने बच्चो का प्रवेश शहर के निजी विद्यालय में करवाया था, उन्होने वापस गाँव के विद्यालय में करवा दिया| ये ताराचंद शर्मा और दूसरे अध्यापको की मेहनत का नतीजा था कि पिछले 3 वर्षों से विद्यालय का दसवीं बोर्ड परीक्षा का परिणाम ना सिर्फ 100% प्रतिशत रहा बल्कि पिछले वर्ष विद्यालय के 2 विध्यार्थीयों ने मेरिट लिस्ट में अपना स्थान भी बनाया था| अलवर जिला कलेक्टर ने गाँव के विध्यालय को जिले के सर्वश्रेष्ठ विद्यालय की उपाधि से सम्मानित किया था|
“क्या कोरोना महामारी की वजह से विद्यालय का नाम खराब हो जाएगा?” सोचते हुये ताराचंद शर्मा परेशान हो उठे थे| -“नहीं नहीं मैं ऐसा कभी नहीं होने दूँगा|” सोचते हुये उन्होने एक निश्चय किया और अपने साथी अध्यापकों के साथ एक चर्चा की| चर्चा में उन्होने सोशल डिस्टेन्स के साथ 9वी-10वी के बच्चों को पढ़ाने का सुझाव दिया, जिसमे एक ग्रुप में सिर्फ 8-10 बच्चे हो और अध्यापक उन्हे दूर से पढ़ाये| सभी अध्यापक उनके इस सुझाव से सहमत थे|
उन्होने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी| ताराचंद शर्मा ने जिला कलेक्टर से मिलकर पूरी बात बताई और पूरे सुरक्षा साधनो के साथ बच्चों को पढ़ाने के लिए आज्ञा ली| विद्यालय को पूरी तरह से सेनीटाइज़ करवाया गया और जगह जगह हाथ को धोने के लिए सेनीटाइज़र रखे गए| तापमान मापने के लिए डिजिटल थर्मामीटर लाया गया| बच्चो को मास्क बाटें गए| और इस तरह से उन्होने सोशल डिस्टेन्स के साथ बच्चों को पढ़ाना शुरू किया| ताराचंद शर्मा आज खुश थे कि मोबाइल, कम्प्युटर, इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसे संसाधनों की कमी की वजह से उनका विद्यालय शहरी निजी विद्यालयों से पीछे नहीं रहेगा|
Sunday, May 31, 2020
समय चक्र
रात को खाना खाने के बाद मैं हमेशा की तरह अपने घर के बाहर बने हुये लान में टहल रहा था|
ऑफिस में प्रोजेक्ट को लेकर मन में कुछ उलझन थी जिससे निजात पाने हेतु मैंने अपने होंठो में सिगरेट सुलगा ली थी और टहलते हुए उसका धीरे धीरे कश लिए जा रहा था|
शुरू से हीं ऐसी हर परेशानी का हल मैंने सिगरेट के धुएँ में ढूंढा था । ये आदत मुझे मेरे पिताजी से विरासत में मिली थी|
इसी दौरान अचानक पीछे से आकर किसी ने मेरे कुर्ते को पकड़ लिया| मुड़ कर देखा तो पाया मेरा 8 साल का बेटा आरव था| मैंने उससे इशारों में पूछा- “क्या काम है?”
“पापा प्लीज आप सिगरेट मत पिया करो| ये सेहत के लिए बहुत नुकसानदायक है| टीवी में भी यही दिखाते है और विद्यालय में मेरे गुरुजी भी यहीं कहते है कि बीड़ी सिगरेट पीना बुरी बात होती है|”
एक तो वैसे ही मैं अपने काम से परेशान था, दूसरा उसका इस तरह से मुझे बोलना, मुझे एकदम से गुस्सा आ गया| उसके गाल पर थप्पड़ मारते हुये मैं गुस्से से चिल्ला पड़ा था-“जा, जाकर अंदर पढ़ाई कर, मेरा बाप बनने की कोशिश मत कर|” थप्पड़ पड़ते ही आरव रोता हुआ घर के अंदर भाग गया|
उसके जाने के बाद मुझे भी अपनी हरकत पर दुख हुआ पर अब कुछ नहीं हो सकता था|
मैं वापस सिगरेट में खो गया था| तभी अचानक मुझे मेरी माँ की आवाज ने चौंका दिया-“बेटा क्या गलत कहा था आरव ने जो तूने उसे थप्पड़ मार दिया? भूल गया तेरे पिताजी कितनी सिगरेट पीते थे और तू कैसे उन्हे मना करता था| काश तेरे पिताजी ने तेरी बात मानी होती वो आज...” कहते कहते माँ रो पड़ी थी| माँ की बात सुनते ही मेरी आँखों के सामने जैसे मेरे बचपन के दृश्य साकार हो उठे थे|
“पापा प्लीज आप सिगरेट मत पिया करो| ये सेहत के लिए अच्छी नहीं होती| इससे कैंसर हो जाता है|” मैं अपने पिता से कह रहा था| उस समय मैं भी लगभग 8-9 साल का ही होगा|
और पापा का जवाब था- “बेटा मैं जानता हूँ, बीड़ी सिगरेट सेहत के लिए ठीक नहीं है, पर क्या करू? जब भी मुझे कोई परेशानी होती है बस तब ही मैं सिगरेट पीता हूँ| सिगरेट पीने से दिमाग को आराम मिलता है और मैं अपनी परेशानी भूल जाता हूँ|”
“पापा जब भी आप परेशान हो, मेरे साथ खेला करो सब परेशानी दूर हो जाएगी|” मैंने मुस्कराते हुये कहा|
“ठीक है मेरे बाप|” कहते हुये पापा ने सिगरेट छोड़ दी और मेरे साथ खेलने लग गए थे|
“पापा! आज फिर आपने सीट बेल्ट नहीं लगाई|” पापा कार स्टार्ट कर रहे थे और मैं उनके बगल में बैठा हुआ उन्हे डांट रहा था| मैंने अपनी सीट बेल्ट पहले ही लगा ली थी|
“अरे...अरे... मैं बस पहनने ही वाला था, उससे पहले ही तूने बोल दिया?” पापा ने झेपते हुया कहा
“पापा झूठ बाद में बोलिए पहले सीट बेल्ट लगाइए|”
“ओके मेरे बाप लगाता हूँ|” कहते हुये उन्होने सीट बेल्ट लगा ली और कार चालू की| उन्होने पहले मुझे मेरे स्कूल में छोड़ा और फिर अपने काम को चल दिये|
मेरे पापा का खुद का कपड़ो का बिजनेस था जिसे वो अपने एक बचपन के मित्र के साथ साझेदारी में चला रहे थे| हमारी ज़िंदगी में सब कुछ सही चल रहा था| हाँ पापा अब भी सिगरेट पीते थे और बोलने पर हमेशा यहीं जवाब देते थे वो थोड़ा परेशान है और सिगरेट पीने से उनको दिमागी आराम मिलता है| पर मेरे बोलने पर वो छोड़ देते थे और मेरे साथ खेलने लग जाते थे| ऐसे ही कुछ साल गुजर गए मैं अब 15 साल का हो गया था| पापा पिछले कुछ दिनों से पहले से ज्यादा सिगरेट पीने लग गए थे, शायद वो अब कुछ ज्यादा परेशान रहने लग गए थे| पर एक तो अब मैं बड़ा हो गया था, दूसरा मेरा दसवी बोर्ड की परीक्षा का साल था, तो मेरा ज़्यादातर समय अब पढ़ाई में गुजरने लग गया था| मेरा पापा के साथ खेलना अब लगभग न के बराबर हो गया था, इसलिए मैं नहीं जान पाया था कि वो अब किस परेशानी से गुजर रहे है? और जब मैंने पापा की परेशानी को जाना, तब तक बहुत देर हो चुकी थी| एक दिन अचानक पापा की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई| उन्हे हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया तो पता चला ज्यादा धूम्रपान करने की वजह से पापा को कैंसर हो गया | तब पापा ने बताया कि उनके बचपन के मित्र जिनके साथ उनका कारोबार था , जिन पर वो सबसे ज्यादा भरोसा करते थे, उन्होने बिजनेस में उन्हें धोखा दिया था। इस सदमे से वो उबर ना पाये और सदा तनाव में रहने लगे थे और उस परेशानी से मिथ्या निजात उन्हे उनकी फेवरिट सिगरेट हीं दिला पाती थी | इस सिगरेट रूपी धीमे जहर से उन्हे कब कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो गई, उन्हे पता भी नहीं चला| पापा के इलाज़ में धीरे धीरे हमारी सारी जमा-पूंजी खत्म हो गई, मकान बिक गया पर पापा ठीक नहीं हुये और एक दिन वो हमें अकेला छोड़ा कर इस दुनियाँ से चले गए| पापा के जाने के बाद माँ ने बड़ी मुश्किल से हमारे परिवार को संभाला| मैंने कसम खाई थी मैं कभी कोई नशा नहीं करूंगा पर वो कसम जल्दी ही टूट गयी जब मैंने इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया| कॉलेज में मुझे एक लड़की से प्यार हुआ और जल्दी ब्रेकअप भी हो गया| ब्रेकअप के बाद मैं बहुत परेशान रहने लगा था ।
मेरी इस हालत में किसी दोस्त ने सिगरेट पकड़ाते हुए कहा कहा-“ये ले , एक कश खींच, तेरी सारी परेशानी दूर हो जाएगी|” उसकी बात सुनकर मुझे मेरे पापा की बात याद आ गई-“ सिगरेट पीने से दिमाग को आराम मिलता है|” सिगरेट पीने से पापा का क्या अंजाम हुआ था ये मुझे याद था, मुझे मेरी कसम याद थी; पर मेरा दिमाग इतना ज्यादा परेशान हो चुका था कि मैं आगे की सोचे बिना सुट्टा लगाने लगा| सिगरेट पीते ही जैसे दिमाग को कुछ शांति सी पहुंची थी| धीरे धीरे मुझे सिगरेट की आदत होने लगी थी और जब भी किसी परेशानी में होता, मुझे सिगरेट के अलावा कुछ और नहीं सूझता| इंजीनियरिंग करने के बाद मैं एक सॉफ्टवेयर कंपनी में जॉब करने लगा | जॉब लगते ही मैंने माँ की पसंद की लड़की से शादी कर ली और शादी के 2 साल बाद आरव पैदा हुआ| जब वो थोड़ा बड़ा हुआ तो उसकी आदतें मेरे बचपन की आदतों से मिलने लगी| जैसे किसी गलती पर मैं अपने पापा को टोक देता था, मेरा बेटा भी मुझे टोकने लग गया था| बाईक पर हेलमेंट ना लगाने पर, कार में सीट बेल्ट ना लगाने पर, रेड लाइट पर सिग्नल तोड़ने पर हर बात पर वो मुझे नियम बताता| मेरे सिगरेट पीने पर भी वो मुझे टोकता था और आज से पहले मैं भी सिगरेट छोड़ कर उसके साथ खेलने लग जाता था| पर आज दिमाग कुछ ज्यादा परेशान था| ऑफिस में प्रोजेक्ट को पूरा करने की डेडलाइन मिल चुकी थी और प्रोजेक्ट तैयार नहीं था, जिसकी वजह से दिमाग आज अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत ज्यादा परेशान था और उसी परेशानी का समाधान मैं सिगरेट में ढूंढ रहा था| और इन्हीं हालातों से आज मैंने आरव को पहली बार इस तरह से डांट कर भगा दिया था| माँ की बात सुनकर जैसे मुझे होश आ गया था| बचपन में हम सब कितने मासूम होते है| हर नियम का पालन करते है, अच्छे बुरे का ज्ञान होता है और बुराई से दूर रहते है| बड़े होने के बाद ना जाने क्यों हम बचपन की उस अच्छाई को भूल जाते है| अच्छे बुरे का ज्ञान होने के बावजूद हम बुराई को अपनाते है| मुझे लगा, जैसे मेरे पापा ही इस जन्म में आरव बन कर मेरी ज़िंदगी में आए है, बुराइयों से दूर करने आए है और जिस तरह से सिगरेट पीने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी, वो मुझे अपने उस आने वाले कल से बचाने आए है| मैंने तुरंत अपनी सुलगाई हुई सिगरेट को बुझा कर फेंक दिया और अपने कुर्ते की जेब से सिगरेट का पैकेट निकालकर घर के डस्टबिन में डाल दिया और अंदर आरव के साथ खेलने चल दिया जो मेरी परेशानी का सबसे बेहतर इलाज़ था| घर के अंदर घुसने से पहले मैंने एक बार आँगन में खड़ी हुई माँ पर नजर दौड़ाई, जिसकी आँखों में आँसू छलक रहे थे, पर मैं जानता था वो खुशी के आँसू थे|
ऑफिस में प्रोजेक्ट को लेकर मन में कुछ उलझन थी जिससे निजात पाने हेतु मैंने अपने होंठो में सिगरेट सुलगा ली थी और टहलते हुए उसका धीरे धीरे कश लिए जा रहा था|
शुरू से हीं ऐसी हर परेशानी का हल मैंने सिगरेट के धुएँ में ढूंढा था । ये आदत मुझे मेरे पिताजी से विरासत में मिली थी|
इसी दौरान अचानक पीछे से आकर किसी ने मेरे कुर्ते को पकड़ लिया| मुड़ कर देखा तो पाया मेरा 8 साल का बेटा आरव था| मैंने उससे इशारों में पूछा- “क्या काम है?”
“पापा प्लीज आप सिगरेट मत पिया करो| ये सेहत के लिए बहुत नुकसानदायक है| टीवी में भी यही दिखाते है और विद्यालय में मेरे गुरुजी भी यहीं कहते है कि बीड़ी सिगरेट पीना बुरी बात होती है|”
एक तो वैसे ही मैं अपने काम से परेशान था, दूसरा उसका इस तरह से मुझे बोलना, मुझे एकदम से गुस्सा आ गया| उसके गाल पर थप्पड़ मारते हुये मैं गुस्से से चिल्ला पड़ा था-“जा, जाकर अंदर पढ़ाई कर, मेरा बाप बनने की कोशिश मत कर|” थप्पड़ पड़ते ही आरव रोता हुआ घर के अंदर भाग गया|
उसके जाने के बाद मुझे भी अपनी हरकत पर दुख हुआ पर अब कुछ नहीं हो सकता था|
मैं वापस सिगरेट में खो गया था| तभी अचानक मुझे मेरी माँ की आवाज ने चौंका दिया-“बेटा क्या गलत कहा था आरव ने जो तूने उसे थप्पड़ मार दिया? भूल गया तेरे पिताजी कितनी सिगरेट पीते थे और तू कैसे उन्हे मना करता था| काश तेरे पिताजी ने तेरी बात मानी होती वो आज...” कहते कहते माँ रो पड़ी थी| माँ की बात सुनते ही मेरी आँखों के सामने जैसे मेरे बचपन के दृश्य साकार हो उठे थे|
“पापा प्लीज आप सिगरेट मत पिया करो| ये सेहत के लिए अच्छी नहीं होती| इससे कैंसर हो जाता है|” मैं अपने पिता से कह रहा था| उस समय मैं भी लगभग 8-9 साल का ही होगा|
और पापा का जवाब था- “बेटा मैं जानता हूँ, बीड़ी सिगरेट सेहत के लिए ठीक नहीं है, पर क्या करू? जब भी मुझे कोई परेशानी होती है बस तब ही मैं सिगरेट पीता हूँ| सिगरेट पीने से दिमाग को आराम मिलता है और मैं अपनी परेशानी भूल जाता हूँ|”
“पापा जब भी आप परेशान हो, मेरे साथ खेला करो सब परेशानी दूर हो जाएगी|” मैंने मुस्कराते हुये कहा|
“ठीक है मेरे बाप|” कहते हुये पापा ने सिगरेट छोड़ दी और मेरे साथ खेलने लग गए थे|
“पापा! आज फिर आपने सीट बेल्ट नहीं लगाई|” पापा कार स्टार्ट कर रहे थे और मैं उनके बगल में बैठा हुआ उन्हे डांट रहा था| मैंने अपनी सीट बेल्ट पहले ही लगा ली थी|
“अरे...अरे... मैं बस पहनने ही वाला था, उससे पहले ही तूने बोल दिया?” पापा ने झेपते हुया कहा
“पापा झूठ बाद में बोलिए पहले सीट बेल्ट लगाइए|”
“ओके मेरे बाप लगाता हूँ|” कहते हुये उन्होने सीट बेल्ट लगा ली और कार चालू की| उन्होने पहले मुझे मेरे स्कूल में छोड़ा और फिर अपने काम को चल दिये|
मेरे पापा का खुद का कपड़ो का बिजनेस था जिसे वो अपने एक बचपन के मित्र के साथ साझेदारी में चला रहे थे| हमारी ज़िंदगी में सब कुछ सही चल रहा था| हाँ पापा अब भी सिगरेट पीते थे और बोलने पर हमेशा यहीं जवाब देते थे वो थोड़ा परेशान है और सिगरेट पीने से उनको दिमागी आराम मिलता है| पर मेरे बोलने पर वो छोड़ देते थे और मेरे साथ खेलने लग जाते थे| ऐसे ही कुछ साल गुजर गए मैं अब 15 साल का हो गया था| पापा पिछले कुछ दिनों से पहले से ज्यादा सिगरेट पीने लग गए थे, शायद वो अब कुछ ज्यादा परेशान रहने लग गए थे| पर एक तो अब मैं बड़ा हो गया था, दूसरा मेरा दसवी बोर्ड की परीक्षा का साल था, तो मेरा ज़्यादातर समय अब पढ़ाई में गुजरने लग गया था| मेरा पापा के साथ खेलना अब लगभग न के बराबर हो गया था, इसलिए मैं नहीं जान पाया था कि वो अब किस परेशानी से गुजर रहे है? और जब मैंने पापा की परेशानी को जाना, तब तक बहुत देर हो चुकी थी| एक दिन अचानक पापा की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई| उन्हे हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया तो पता चला ज्यादा धूम्रपान करने की वजह से पापा को कैंसर हो गया | तब पापा ने बताया कि उनके बचपन के मित्र जिनके साथ उनका कारोबार था , जिन पर वो सबसे ज्यादा भरोसा करते थे, उन्होने बिजनेस में उन्हें धोखा दिया था। इस सदमे से वो उबर ना पाये और सदा तनाव में रहने लगे थे और उस परेशानी से मिथ्या निजात उन्हे उनकी फेवरिट सिगरेट हीं दिला पाती थी | इस सिगरेट रूपी धीमे जहर से उन्हे कब कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो गई, उन्हे पता भी नहीं चला| पापा के इलाज़ में धीरे धीरे हमारी सारी जमा-पूंजी खत्म हो गई, मकान बिक गया पर पापा ठीक नहीं हुये और एक दिन वो हमें अकेला छोड़ा कर इस दुनियाँ से चले गए| पापा के जाने के बाद माँ ने बड़ी मुश्किल से हमारे परिवार को संभाला| मैंने कसम खाई थी मैं कभी कोई नशा नहीं करूंगा पर वो कसम जल्दी ही टूट गयी जब मैंने इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया| कॉलेज में मुझे एक लड़की से प्यार हुआ और जल्दी ब्रेकअप भी हो गया| ब्रेकअप के बाद मैं बहुत परेशान रहने लगा था ।
मेरी इस हालत में किसी दोस्त ने सिगरेट पकड़ाते हुए कहा कहा-“ये ले , एक कश खींच, तेरी सारी परेशानी दूर हो जाएगी|” उसकी बात सुनकर मुझे मेरे पापा की बात याद आ गई-“ सिगरेट पीने से दिमाग को आराम मिलता है|” सिगरेट पीने से पापा का क्या अंजाम हुआ था ये मुझे याद था, मुझे मेरी कसम याद थी; पर मेरा दिमाग इतना ज्यादा परेशान हो चुका था कि मैं आगे की सोचे बिना सुट्टा लगाने लगा| सिगरेट पीते ही जैसे दिमाग को कुछ शांति सी पहुंची थी| धीरे धीरे मुझे सिगरेट की आदत होने लगी थी और जब भी किसी परेशानी में होता, मुझे सिगरेट के अलावा कुछ और नहीं सूझता| इंजीनियरिंग करने के बाद मैं एक सॉफ्टवेयर कंपनी में जॉब करने लगा | जॉब लगते ही मैंने माँ की पसंद की लड़की से शादी कर ली और शादी के 2 साल बाद आरव पैदा हुआ| जब वो थोड़ा बड़ा हुआ तो उसकी आदतें मेरे बचपन की आदतों से मिलने लगी| जैसे किसी गलती पर मैं अपने पापा को टोक देता था, मेरा बेटा भी मुझे टोकने लग गया था| बाईक पर हेलमेंट ना लगाने पर, कार में सीट बेल्ट ना लगाने पर, रेड लाइट पर सिग्नल तोड़ने पर हर बात पर वो मुझे नियम बताता| मेरे सिगरेट पीने पर भी वो मुझे टोकता था और आज से पहले मैं भी सिगरेट छोड़ कर उसके साथ खेलने लग जाता था| पर आज दिमाग कुछ ज्यादा परेशान था| ऑफिस में प्रोजेक्ट को पूरा करने की डेडलाइन मिल चुकी थी और प्रोजेक्ट तैयार नहीं था, जिसकी वजह से दिमाग आज अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत ज्यादा परेशान था और उसी परेशानी का समाधान मैं सिगरेट में ढूंढ रहा था| और इन्हीं हालातों से आज मैंने आरव को पहली बार इस तरह से डांट कर भगा दिया था| माँ की बात सुनकर जैसे मुझे होश आ गया था| बचपन में हम सब कितने मासूम होते है| हर नियम का पालन करते है, अच्छे बुरे का ज्ञान होता है और बुराई से दूर रहते है| बड़े होने के बाद ना जाने क्यों हम बचपन की उस अच्छाई को भूल जाते है| अच्छे बुरे का ज्ञान होने के बावजूद हम बुराई को अपनाते है| मुझे लगा, जैसे मेरे पापा ही इस जन्म में आरव बन कर मेरी ज़िंदगी में आए है, बुराइयों से दूर करने आए है और जिस तरह से सिगरेट पीने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी, वो मुझे अपने उस आने वाले कल से बचाने आए है| मैंने तुरंत अपनी सुलगाई हुई सिगरेट को बुझा कर फेंक दिया और अपने कुर्ते की जेब से सिगरेट का पैकेट निकालकर घर के डस्टबिन में डाल दिया और अंदर आरव के साथ खेलने चल दिया जो मेरी परेशानी का सबसे बेहतर इलाज़ था| घर के अंदर घुसने से पहले मैंने एक बार आँगन में खड़ी हुई माँ पर नजर दौड़ाई, जिसकी आँखों में आँसू छलक रहे थे, पर मैं जानता था वो खुशी के आँसू थे|
Friday, April 21, 2017
भूख
माँ भूख लगी है |
बस बेटा 10 मिनट रूको अभी गर्म गर्म रोटी सेंक देती हूँ |
बेटा भूख लगी है |
माँ काम वाली बाई को तो टाइम लगेगा खाना बनाने मे। तुम ऐसा करो रात की बची हुयी रोटी खा लो |
बस बेटा 10 मिनट रूको अभी गर्म गर्म रोटी सेंक देती हूँ |
बेटा भूख लगी है |
माँ काम वाली बाई को तो टाइम लगेगा खाना बनाने मे। तुम ऐसा करो रात की बची हुयी रोटी खा लो |
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