Thursday, October 28, 2021

नया जन्म

संजय राठोड़ कल रात से बहुत परेशान था| वह भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर कार्यरत था जिसकी तैनाती कारगिल में थी| वह 15 दिन पहले ही अपनी 60 दिन की वार्षिक छुट्टियाँ लेकर अपनी गर्भवती पत्नी की देखभाल के लिए घर आया हुआ था| जब वो अपने तैनाती स्थल से अपने घर के लिए निकला था तब तक वहाँ पर सब कुछ सही चल रहा था| पर पिछले 5-6 दिनों से सरहद के उस पार से भारतीय सीमा में घुसपेठ की खबरे आ रही थी| उसके साथियों की छुट्टियाँ रद्द हो चुकी थी और उन्हे जल्द से जल्द अपनी पोस्टिंग पर लौटने के लिए कहा गया था| हालांकि उसको अभी तक बुलावा नहीं आया था, पर यह जानकर कि उसकी मातृभूमि पर संकट आया हुआ है, वह भी जल्दी से जल्दी कारगिल जाना चाहता था| पर वह यह सोचकर परेशान था कि उसके पीछे से उसकी गर्भवती बीवी को किसके पास छोड़कर जाएगा, उसकी देखभाल कौन करेगा? ऐसा नहीं था कि उसके परिवार में कोई और नहीं था| उसके परिवार में सब थे, माता-पिता,भाई-बहन, पर उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया था| उसकी वजह थी कि उसने अपने घरवालो के विरुद्ध जाकर अपने महाविध्यालय में साथ पढ़ने वाली काजल से शादी की थी| काजल निम्न जाति समझे जाने वाली महार जाती से थी| संजय ने अपने माता-पिता को समझाने की बहुत कोशिश की थी कि आज के जमाने में जात-पात व्यर्थ बात है| उसकी माँ तो फिर भी काजल को अपनाने के लिए तैयार हो गई थी पर उसके पिताजी पुराने विचारों के थे और आज भी उन्हे अपनी ऊंची जाती पर अभिमान था| उन्होने काजल को अपनाने से साफ इंकार कर दिया था| मजबूरन संजय ने काजल के साथ कोर्ट में विवाह किया और शहर में अलग मकान लेकर रहने लग गया था| पढ़ाई पूरी करने के बाद संजय भारत माँ की सेवा करने के अपने बचपन के सपने को पूरा करने के लिए भारतीय सेना में भर्ती हो गया वहीं पर काजल एक विध्यालय में पढ़ाने लग गई| साल में 1 बार अपनी वार्षिक छुट्टियों में ही वो काजल से मिल पाता था| जब काजल गर्भवती हुई थी तो उसने ये समाचार अपने माता-पिता को बताने के लिए काजल को लेकर उनके पास गया था पर उसके पिता ने उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया था और दुबारा वहाँ कभी नहीं आने के लिए कहा था| रात भर वो इसी उधेड़बुन में था कि उसके जाने के बाद काजल की इस हालत में देखभाल कौन करेगा और इसी वजह से वो सो नहीं पाया था| काजल उसकी इस परेशानी को समझ गई थी| उसने सुबह होते ही संजय से कहा –“ मैं अपनी सहेली को अपने पास बुला लेगी, आपको चिंता करने के बिलकुल भी जरूरत नहीं है| इस समय मुझसे ज्यादा भारत माँ को आपकी जरूरत है| बस आप जल्दी सीमा पर जाकर दुश्मन को सबक सिखाइए|” उसकी बात सुनकर संजय थोड़ा बहुत चिंतामुक्त हुआ| उसने अपना बेग उठाया और स्टेशन की और चल पड़ा| उसकी बीवी उसको विदा करने के लिए स्टेशन तक आई| उसने मुड़ कर देखा तो लगा बीवी के साथ उसका बेटा भी उसे दुश्मन से लड़ने के लिए शुभकामनायें दे रहा है| संजय को सरहद पर गए 5 दिन हो गए थे| कारगिल की पहाड़ियों में दुश्मन अपना कब्जा जमा लिया था और भारतीय सेना ने उनको भगाने के लिए उनके खिलाफ कार्यवाही प्रारम्भ कर दी थी| उसके पीछे काजल अब घर में अकेली थी| उसने अपनी सहेली को बुलाना चाहा पर उसकी सहेली शहर से बाहर गई हुई थी| उसे बहुत परेशानी हो रही थी पर वो अपनी परेशानी किसी को भी बता नहीं सकती थी| वो बस भगवान से लड़ाई को जल्दी से जल्दी खत्म करने की प्रार्थना करने लगी थी ताकि उसका पति उसके पास लौट सके| सुबह के 11 बज रहे थे और काजल अपने घर में बिस्तर में लेटी हुई थी कि तभी बाहर से किसी ने बेल बजाई| वो किसी तरह से बिस्तर से उठी और दरवाजा खोला तो पाया कि सामने संजय के माता-पिता खड़े थे| उसने नीचे झुक कर उन्हे प्रणाम करना चाहा पर संजय की माँ ने उसे बीच में ही रोक लिया और अपने गले से लगा लिया| तभी काजल की नजरे सामने की तरफ गई तो वो चौंक पड़ी| कुछ सैनिक एक ताबूत को लेकर खड़े थे और फिर जैसे वो सब समझ गई थी| उसके मुंह से एक ज़ोर सी चीख निकली और आँखों से आँसूओं की धारा बह निकली| तभी संजय के पिता ने कहा-“नहीं बेटी रोते नहीं है| तुम्हारा पति देश के लिए शहीद हुआ है| मेरे बेटे ने देश के लिए जान दी है पर उसने मेरी सोच को एक नया जन्म दिया है| जब देश की रक्षा करने वालों में हम जाति नहीं देखते, फिर क्यों मैं अपनी बहू में जाति देखने लग गया था| मुझे माफ कर दो बेटी|”

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